संदेश
हम सुनाते दास्ताँ अपनी कि वो सुनाने लगे - ग़ज़ल - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तकती: 22 22 22 22 22 22 हम सुनाते दास्ताँ अपनी, कि वो सुनाने लगे हम करते आग़ाज़-ए-इश्क़,…
तुम न बदलना - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
तुम न बदलना, वक्त भले बदलता रहे। इश्क़ का चिराग़ आँधियों में भी जलता रहे। न मिल सको हर रोज़ तो कोई बात नहीं! इतना सा दिख जाओ कि निगाहों क…
मकड़ी - कविता - प्रवीन 'पथिक'
अपने कटु मनोभावों का जाल, बुनती हुई मकड़ी! सोद्देश्य– निमग्न अवस्था में कुएँ के अंतिम छोर तक; पहुॅंच गई है। अप्रत्याशित रूप से, वह ख़ुश…
आईना झूठ नहीं बोलता - कविता - रत्नेश शर्मा
सभी कहते हैं आईना झूठ नहीं बोलता इन्सान हो या पर्वत-पहाड़ बेदाग़ चेहरा हो या दाग़दार हू-ब-हू दर्शा देता है। इसीलिए, नए दौर के लोग आईना न…
जागृति - कविता - भजन लाल हंस बघेल
सूर्योदय से पहले चिड़िया चहचहाई, उठो! जागो! यह संदेशा लाई। चल रही मंद-मंद शीतल पवन, अति आनंदित! रोमांचित! तन और मन। पीपल के पत्तों की …
रूप की रवानी - घनाक्षरी छंद - सुशील कुमार
काले कजरारे नैना गाल है गुलाबी और, दामिनी से दाँत चमकाय रही गोरी है। अंग-अंग कुसुमित फूले फुलवारी ज्यो, ख़ुशबू से मन को लुभाय रही गोरी …
नशा मुक्ति - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
लगी लतें द्रग नशा की, नौनिहाल इस देश। तम्बाकू गाजा चरस, नशाबाज़ परिवेश॥ गज़ब नशा वातावरण, यौवन वय मदपान। अल्कोहल मदिरा नशा, रत जीवन अव…
घरेलू हिंसा - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
गरिमामय तरीक़े से जीने के अधिकार का हनन ही घरेलू हिंसा कहलाता है। वर्तमान समय में लोगो की असहिष्णुता, बेरोज़गारी, अति स्वार्थी प्रवत्ति,…
मुझे तुमसे कुछ कहना है - कविता - ब्रज माधव
देखो बच्चे बड़े हो गए हैं घर से बाहर चले गए हैं मेरे पास समय ही समय है टीवी अख़बारों से मन भर गया है दफ़्तर में भी आज छुट्टी है पास बैठ त…
गंगा की लहरों में - कविता - अदिति वत्स
ऋषिकेश, मैं तुमसे मिलने आई थी, पहली बार, जैसे कोई तीर्थयात्री अपनी आत्मा की खोज में किसी अनजान मंदिर की ओर भटक जाए। तेरा नाम मेरे कानो…
अंदर का इंसान और पिंजरे का चूहा - कहानी - बिंदेश कुमार झा
आज का दिन बाक़ी दिनों से अलग होने वाला था। एक बड़ा प्रोजेक्ट था और आज उसकी प्रस्तुति थी ऑफिस में। यह कितना महत्वपूर्ण था, इसका अंदाज़ा …
पाँखी - कविता - मयंक द्विवेदी
ओ पिंजड़े के पाँखी तुम क्या जानो ये नील गगन ओ पिंजड़े के पाँखी तुम क्या जानो ये मस्त पवन। तुमने देखा है केवल विवश हुई इन आँखों से तुमन…
आत्मबोध - कविता - प्रवीन 'पथिक'
इस क़दर ज़िंदगी को जिए जा रहा था, कि हर क़दम पर मेरा साथ दोगे। पाथेय बनकर सदा रहोगे मेरे साथ; ऑंचल की छाँव की तरह। लेकिन तुमने तो कुछ दूर…
दीदी - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
"फ़ोन उठाओ देवराज!" "दीदी, कुछ कार्यों को लेकर अभी व्यस्त हूँ।" "दीदी नहीं कहा करो।" देवराज साश्चर्य पूर…
यंत्र - कविता - मदन लाल राज
सुबह का होना चिंताओं का समीकरण। फिर शुरू होती है, घटा-गुणा, भाग-दौड़। लगातार गतिशीलता बढ़ाती है दिल की धड़कन। मशीनों की खटखट और धुआँ स…
बाबा साहब भीमराव आम्बेडकर - दोहा छंद - सुशील शर्मा
महू में जन्में आप थे, जीवन था संघर्ष। छूआछूत की पीर से, मन में भरा अमर्ष॥ शिक्षा के हथियार से, पाया उच्च मुकाम। ज्ञान-साधना से रचा, स्…
महावीर बजरंग बली - गीत - उमेश यादव
महावीर बजरंग बली, श्री राम दूत का अभिनन्दन है। दुष्टदलन, दुःख-कष्ट हरण श्री मारुतिनंदन शुभवंदन है॥ दुष्टों के हनुमत काल सदा हैं, महाका…
महावीर झूले पलना - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
झूले पलना महावीर प्रभु, आंजनेय हनुमत खलभंजन, महाबली जय अलख निरंजन, करूँ नमन जय मारुतिनंदन। भवबाधा हर आञ्जनेय जग, तन मन धन अर्पण रघुनन्…
हुआ क्या? - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
खुली आँख थी या कि तुम सो रहे थे, कहीं उड़ गया था तुम्हारा सुआ क्या? घटना घटी देखकर पूछते हो! हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या? हुआ क्या?? …
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