संदेश
मुझे नहीं चाहिए - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
मेरे पास कुछ भी नहीं है, जहाँ थोड़ी देर बैठ कर सुस्ता सकूँ न ईमानदार पसीने की महक न कोई सार्थक पंक्तियाँ कुछ निरर्थक शब्दों की आवाजाही …
नवयुग की हम नारी - कविता - प्रमोद कुमार
नव प्रभात अब निकल गया है, कटी रात अंधियारी, अब इतिहास बदलेंगे मिलकर, नवयुग की हम नारी। कालरात्रि दुर्गा बनकर हमने असुरों को मारा, चामु…
आत्म संवाद - कविता - अंजू बिजारणियां
ये जवानी का दौर, दूसरी ओर सफलता प्राप्ति का शोर। पड़ रहा मुझ पर मेरा ही ज़ोर। अपने आप में रहना भी चाहूँ, निकलना भी चाहूँ, छाया कोहरा चा…
माँ ने पढ़ी दुनिया - कविता - श्वेता चौहान 'समेकन'
कभी कभी वो मुझे देर तक निहारती है, माँ मेरी परेशानियाँ पहचानती है। माँ पढ़ती है, मेरी आँखें, मेरा चेहरा और मन, वो जानती है हृदय की उलझ…
प्रसन्नता - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
गीत ख़ुशी के गाऍं जा हम, मन प्रसन्नता शहद सुधा है। शिरोवेदना दर्द निवारक, ग़म उदास मन ख़ुशी दवा है। सत्कार्य ध्येय जीवन सहचर, हर्ष सुधारस…
गिद्ध - कविता - मदन लाल राज
गिद्ध, नोंचने में सिद्ध। दूर-दूर तक प्रसिद्ध। आजकल वह भी सोचने लगा है। मुझ से अच्छा तो आदमी नोंचने लगा है। आकाश में अब बेचारा लुप्त प…
जीवन है अनमोल जगत में - कविता - रमेश चन्द्र यादव
जीवन है अनमोल जगत में, संभल कर क़दम उठाना रे। ग़लती कोई हो जाए एकबार, तो उसको ना दोहराना रे। मत सोचो तुम हो अकेले, नहीं कोई है साथ तुम्…
तेरी दुनियाँ में मुझको - नज़्म - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
तेरी दुनियाँ में मुझको, दिलकश कोई किरदार ना मिला ख़ुशामद के दीवाने हैं यहाँ, हुनर का जानकार ना मिला वफ़ा की उम्मीद क्या करें, कोई ज़र-प…
यथार्थ का गाँव - नज़्म - कर्मवीर 'बुडाना'
मेरे दिल में बसी हर बात एक निशानी है, बीता वो दौर पुराना, अब न आना-जानी हैं, तुम चाहे करो इशारें, नहीं दिल में चाहत हैं, माना हूँ कवि …
कविता - कविता - रोहित सैनी
कविता मुझे दवाई की तरह मिली सर दर्द हो या पेट दर्द या बुख़ार मैंने इसे गोली की तरह खाया और उलटी की तरह पेश आया हर बार इसके साथ अब जो कु…
देखो! ऐसा है हमारा बिहार - कविता - आलोक कौशिक
सकारात्मक सोच यहाँ की हृदय में करूणा और प्यार संघर्ष का साहस यहाँ पर कभी ना होती हौसलों की हार देखो! ऐसा है हमारा बिहार नयनाभिराम नदिय…
यूँ मत गुमशुम रहा करो - गीत - सुशील कुमार
कितनी बार कहा है तुमसे, यूँ मत गुमशुम रहा करो। जो भी हों अवसाद हृदय के, खुलकर मुझसे कहा करो॥ मन की स्मृतियों के मोती, मिलकर दोनों चुन …
आख़िरी मुलाक़ात - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
इस बार वो गई मगर हर बार की तरह नहीं हर बार चली जाती थी मुझे पीछे छोड़कर मैं देखता रहता था उसे नज़रों से ओझल होने तक एक टूटी उम्मीद लेकर…
उनींदी आँखें - कविता - संजय राजभर 'समित'
चैत्र मास तपती धरा टैंकर का पानी यह कैसी बुद्धिमानी पाउच में पानी! एक तरफ़ मंगल ग्रह पर खोज एक तरफ़ प्रकृति की चेतावनी बार-बार फिर भी ज…
सिद्धू-कान्हू: संथालों का संग्राम - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
जब अन्याय की आँधी आई, वनवासी जब रोते थे, शोषण की ज्वाला में जलकर, सपने उनके खोते थे। साहूकारों के बन्धन में जब, जीवन कुम्हलाने लगा, ज़म…
झारखंड राइज भइया देसेक हामर सान - खोरठा गीत - विनय तिवारी
झारखंड राइज भइया देसेक हामर सान देसेक हामर सान हो, देसेक हामर सान सोना चांदी लौहा मिलय 2 आरो कोयलाक खान हो आरो कोयलाक खान झारखंड राइज …
ग़रीबी - कविता - रवि कुमार
क्या गुज़रती होगी उनपर जिनके भूखे पेट है लाल कई आश लगाए, सड़क किनारे तनपे है कपड़े फटे, पुराने थामे कटोरा हाथ में है नहीं कुछ खाने को। …
पुण्य - कविता - मदन लाल राज
भरी दोपहरी में एक सज्जन ने– घर के आँगन में पक्षियों के लिए, सकोरे में पानी भरा। तभी दरवाज़े पर एक शुष्क आवाज़ आई। किसी ने प्यासा होने की…
प्रिया के लिए - कविता - पवन कुमार मीना 'मारुत'
प्रिय पत्नी पवित्र प्रेम पारावार पाकर, जीवन पहेली प्रियतम पार किया है। परिवार पालन पोषण प्रेरणा पति की, सुख संग जीवनसाथी जीवन जिया है॥…
बचपन की यादें - कविता - चौधरी बिलाल
धीरे-धीरे समय बढ़ता गया यारों का मजमा घटता गया कामों में हो गए सब बिजी तक़दीर ने ऐसी माया खींची बचपन था यारों बड़ा प्यारा उम्र ने किया …
बात मन की कभी तो बताया करो - ग़ज़ल - डॉ॰ आदेश कुमार पंकज
बात मन की कभी तो बताया करो दर्द दिल में छिपा मत सताया करो हो अकेले कभी मम ज़रूरत पड़े पास अपने हमें तुम बुलाया करो बाग़-बगिया दिशाएँ मनोर…
नया सवेरा - कविता - मयंक द्विवेदी
प्रत्यूषा के आँगन में निकला नया सवेरा है संघर्षों के मैदानों में क्या जीना क्या मरना है साहिल से क्या यारी अपनी जब मझधारों में पलना ह…
कहीं पे चंदर उदास बैठा - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'जानिब'
अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती: 1222 1222 1222 1222 कहीं पे चंदर उदास बैठा, कहीं सुधा भी बुझी पड़ी है मगर ये क़…
बहुत दूर तक - कविता - प्रवीन 'पथिक'
बहुत दूर तक, देखता हूॅं उस मानव को। जो बुन रहा अपनी मायाजाल। उसमें फँसना नहीं चाहता, फाँसना चाहता है। अपने पास रहने वाले लोगों को। कोई…
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