संदेश
जाल - कविता - मदन लाल राज
मकड़ी सिद्धहस्त है, ख़ुद जाल बनाने में। फिर तरकीब लगाती है, शिकार को फँसाने में। अपने रसायन से वो बेतोड़ जाल बुनती है। पकड़ने को कीड़े…
तू ज़िंदा है! - कविता - संजय राजभर 'समित'
उठ चल! और लड़ गर साँस लेता हुआ तू ज़िंदा है तो याद रख तुझे आगे बढ़ना ही पड़ेगा, गर थक गया है तो माँझी को देख गर अंधा है तो लुइ ब्रेल को…
ख़ुद को ढूँढ़ने की राह - कविता - रूशदा नाज़
हर शख़्स को यादों में रोते देखा है व्यथित होकर ख़ुद को सम्भालतें देखा है ख़ुद से प्यार करने की सलाह सब देते है प्रेम में बिखरने के बाद ये…
सिन्दूर के बदले - कविता - पवन कुमार मीना 'मारुत'
युद्ध यादें दे जाता है कड़वी-कड़वी यादें। ले जाता है साया दुधमुँहें बच्चों के सिर से बाप का। और दे जाता है सिन्दूर के बदले हँसती-मुस्कुर…
आँधी आई है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
बदहवास सा मौसम लगता आँधी आई है। बेमौसम है पानी बरसा। कुँआ-ताल है जल को तरसा॥ शाकिनी-डाकिनी जैसी लगती मँहगाई है। सदाचार का टोटा है अब। …
कहने को अपने - कविता - सुशील शर्मा
भीड़ में भी क्यों, दिखती है दूरी। अपनों को अपना कहना है भारी। शब्दों के धागे, रिश्तों की माला, पर मन के भीतर, दिखता है हाला। मुश्किल घड़…
सहर को सहर नहीं कहता - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
परहेज़ करता है वह खिलखिलाने से, कि अपने मन की सरे-आम बताने से। यूँ चुप रहता है और आँखों से ख़ूब बोलता है, जाने क्या आता है ज़ुबाँ पे पैमा…
साक्ष्य - कविता - बृज उमराव
शिलालेख प्रस्तर पट छतरी, दीर्घायु पादप चाँद सितारें। देते हैं प्रत्यक्ष गवाही, कभी किसी से वह न हारें॥ परिवर्तन है प्रकृति प्रदत्त, इस…
प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव
सकल सृष्टि में संकट छाया, दूषित हुआ समाज। प्रकृति प्रेम गमलों में सीमित, दिखता देखो आज॥ ब्रह्मा ने जब सृष्टि बनाई, रखा सभी का ध्यान। ज…
मैं मौन हो गया - कविता - इमरान खान
मैंने उस लड़की से कहा– 'मैं तुम पर एक कविता लिखना चाहता हूँ!' उस लड़की ने मुझसे पूछा– 'तुम्हारे शब्दों में मेरे होंटों की …
हे ईश्वर! - कविता - नंदनी खरे 'प्रियतमा'
हे ईश्वर! यदि क़िस्मत जैसा कुछ वास्तव में होता है, तो नाइंसाफ़ी बहुत की है तुमने। तुमने क़िस्मत के मामले में, किया है समता के अधिकारों का…
लिखूँ तो मैं लिखूँ क्या - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
लिखूँ तो मैं लिखूँ क्या? जो बोले, पर मौन रहे। जो जल जैसा हो थिर-थिर, पर भीतर ही भीतर बहे। जिसमें रूप न कोई दिखे, ना कोई स्पष्ट रेखा। ज…
पैसा बोलता है - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | पैसे पर दोहे
पैसा बोलता दुनियाँ, पैसा ही नवरंग। रिश्ते नाते मान यश, बिन पैसे बदरंग॥ पैसे ही ऊँचाइयाँ, पैसे ही सम्मान। पैसों के महफ़िल सजे, पैसा ही भ…
शर्मिंदगी - कविता - राजेश राजभर
मौन हो! तुम कौन हो? क्यों छिपते हो, शर्मिंदगी की आड़ में। एक नारी ही तो "नग्न" हुई, आज भरे बाज़ार में! मौन हो! तुम कौन हो? …
रीति रिवाज बनाम भावी पीढ़ी - आलेख - बबिता कुमावत
क्या ऐसे रीति रिवाज उचित है? जो भावी पीढी की शिक्षा को प्रभावित करते हैं, क्या उन रिवाजों पर पुनर्विचार नहीं किया जाना चाहिए? जो देश क…
इश्क़ का गाँव - कविता - निर्मल श्रीवास्तव
इश्क़ का गाँव बना के हमको भी वहीं बसा दो कितनो को तुमने बनाया मेरे लिए इक ना बनाया मेरे ख़ातिर कोई बता दो थोड़े बाग़ों को लगा के थोड़ा फूलो…
पहली बार बारिश - कविता - बिंदेश कुमार झा
पहली बार बारिश कहाँ हुई थी? मिट्टी की गोद में, गर्भ के विरोध में, वैज्ञानिकों के शोध में— नहीं मालूम। आख़िरी कब होगी? चंद्रमा के तल पर…
बारिशों के आँसू - कविता - मदन लाल राज
ऐसे भी लोग हैं जो दूसरों की चिताओं पर अपनी रोटी सेक लेते हैं। पर वो कहाँ मिलेंगे जो बारिशों में भी आँसू देख लेते हैं। मदन लाल राज - न…
मानसून आया - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
झाड़ी-झुरमुट-पेड़ हैं मानसून आया। लगी चाँदनी चंदन जैसे। होता है अभिनंदन जैसे॥ झोला भर भर है देखा परचून आया। मिट्टी के हैं खेल खिलौने। …
कविता और कवयित्री - कविता - संजय राजभर 'समित'
मैंने पूछा– "तू इतनी उदास क्यूॅं है?" तो वह अपनी आँखें झुका ली। आप बीती कैसे बयाँ करती वो आँखों से अश्कों को ही छुपा ली। मैं…
मैं रोग हूँ कि दवा हूँ कि इश्क़ हूँ दुआ हूँ - ग़ज़ल - रोहित सैनी
अरकान: मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती: 1212 1122 1212 22 मैं रोग हूँ कि दवा हूँ कि इश्क़ हूँ दुआ हूँ मैं कौन हूँ जो भटकता हूँ…
दिल में मेरे कोई भूचाल सा ठहर गया - ग़ज़ल - सुनील खेड़ीवाल 'सुराज'
अरकान: फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़े तकती: 22 22 22 22 22 2 दिल में मेरे कोई, भूचाल-सा ठहर गया, बस रह गया वो याद में, ख़्याल-सा…
मैं चला मैं ढूँढ़ने - कविता - सुष्मिता पॉल
मैं चला मैं ढूँढ़ने, कभी अपनों में, कभी ग़ैरों में, कभी मंदिर में, कभी पहाड़ों में, असीम शांति की खोज में, भटकता रहा राहगीर मैं, दर-दर …
तेरे बाद कुछ भी ना था - ग़ज़ल - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव 'जानिब'
अरकान: मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन फ़ेइलुन तक़ती: 2122 2122 2122 212 तेरे बाद कुछ भी ना था, दिल में फिर भी धड़कन रही, हर इक बात में तू…
घना धुँध - कविता - प्रवीन 'पथिक'
जीवन गहराता जा रहा, एक घने धुँध से। मन व्याकुल है; जैसे पिंजरे में बंद कोई पक्षी हो। हृदय आहत है; अपने ही द्वारा किए गए कार्यों से। शर…
प्रकृति पीड़ा - अवधी गीत - संजय राजभर 'समित'
होत रहेला धूप-छाँव चिरई। जनि करा करेजवा में घाव चिरई॥ ग़लती के पुतला हवे मनई। मत बढ़ावा घर से पाँव चिरई। जनि करा... घरवा में चिरई उछल क…
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