संदेश
धर्म बनाम कर्म : विचार और क्रियान्वयन
विचारों का उद्गम हमेशा किसी बड़े अवसर से नहीं होता, कई बार किसी क्षणिक प्रश्न से ही विचारों की एक नई यात्रा प्रारंभ हो जाती है-अनायास,…
जो कब की कट गई - नज़्म - छगन सिंह जेरठी
हम दोनों अपनी अपनी पतंग उड़ाते, आसमान में लड़ गए। ना कटती बने ना उड़ती बने, फिर कुछ यूँ उलझ गए। दर्शक जो कह रहे थे, आख़िर वही हुआ उसकी …
अनुभूति और अभिव्यक्ति - कविता - द्रौपदी साहू
बाबूजी! ये घर, जो घर लगता था अब कितना सूना है! आपकी याद में जब गहन चिंतन में डूब जाती हूँ तब मन में प्रश्न उठता है! आख़िर जीवात्मा जाते…
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
मैंने अपनी जान हथेली पर उसके कर डाला इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला काश की मिल पाता मैं उनसे हाल दिलों के गाता काश की इस बंजर धर…
समुचित अनुचित चिन्तना - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
हो ईमान पुरुषार्थ में, संयम बुद्धि विवेक। सुख वैभव ख़ुशियाँ सुयश, उचित वक्त अभिषेक॥ शिक्षित हो सबजन वतन, सबका हो उत्थान। हो प्रबंध शिक्…
ईश्वर और नैतिकता - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा 'सूर्या'
ईश्वर है या नहीं, कोई नहीं जानता। कुछ ईश्वर के अस्तित्त्व को मानते हैं और कुछ ईश्वर के अस्तित्त्व को काल्पनिक कहकर नकार देते हैं। लेकि…
झारखंडेक माटिक मान - खोरठा गीत - विनय तिवारी
सुना सुना बंधु भाइ तोहनीं चलल हा अगुवाइ झारखंडेक माटिक मान राखिहा जोगाइ। सुना सुना बंधु भाइ... झारखंड खातिर रकतें राँगाइल कते घार-आँगन…
विवशता - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
विवश था मैं, विवशता की परिधि से बाहर आने में। विवश था यह सोच कि जब खेलते थे खेल बचपन में आँख मिचौली का, बाँध पट्टी आँखों पर कई परत की,…
ग़रीब - कविता - आचार्य प्रवेश कुमार धानका
अमीर सुख से सो रहा है पैसों के बीज बो रहा है धन पैदा बहुत हो रहा है ग़रीब दु:ख से रो रहा है, ग़रीब दु:ख से रो रहा है। रहता चिंतित और बेच…
वन्दनीय भारत - रूप घनाक्षरी छंद - पवन कुमार मीना 'मारुत'
(1) वन्दना वर वतन विधाता की करते हैं, विश्व विख्यात बुद्ध भारत-भूमि का था लाल। मध्यम मार्ग महानायक ने निकाला न्यारा, पाया पूर्ण वरदान …
आँचल - कविता - प्रशांत
बूँदें गिर रही हैं, मीठी हवा... उसके आँचल से निकली हो जैसे। आकर कान में एक मीठा राग घोलती, कुछ कमियाँ बताती है मेरी... लेकिन उसमें शिक…
एक ख़ुशनुमा शाम - कविता - प्रवीन 'पथिक'
इसी नदी के किनारे एक ख़ुशनुमा शाम सूर्य लालिमा लिए छिप रहा था। संध्या के आँचल में, चिड़ियों का कलरव, झिंगुरों की झंकार दूर एक झाड़ी से …
लिखना - कविता - पंडित विनय कुमार
बार-बार कुछ लिखने के बाद बदल जाता है मन का भाव जिसमें होते हैं विचार जिसमें होती हैं सोची गई कल्पनाएँ हर एक कल्पना में होता है सृजन का…
विवाह - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | विवाह पर दोहे
नर-नारी कारण जगत, जीवन का आधार। शुभ विवाह बन्धन प्रणय, सप्त बन्ध परिवार॥ रिश्ते नाते सब यहाँ, बस विवाह सम्बन्ध। धर्म सनातन आस्था, कु…
तुम्हीं तो हो - कविता - प्रवीन 'पथिक'
हर सुबह मेरे ख़्वाबों में आकर मुझे अपनी सुगंधों से भर देने वाली तुम ही तो हो। तुम्हारा आहट पाकर ही तो, पंछी बोलते हैं, फूल खिलते हैं, भ…
धर्मयुद्ध - कविता - विभान्शु राय
जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि में, लड़ने को सब तैयार हुए, अस्त्र-शस्त्र से सज्जित होकर, योद्धा रथ पर सवार हुए॥ एक तरफ़ थी कौरव सेना, और कई श…
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