बादल
अपने संग लपेट लेता है
पानी,
फिर भी समुंद्र खाली
नहीं होता,
कर लेता है सफर जिंदगी में,
किंतु वक्त से
विजय का प्रकाश कहां ?
रोशनी चुरा लेता चांद से,
धरती पर सुगंध छोड़ता कभी-कभी,
नभ में उड़ता एक उमंग लेकर,
पक्षी तरह उसे भूख कहां?
स्वागत में झूमती हैं कलियां,
लगता गहरा संबंध हो उनका,
करता चक्रण संपूर्ण आसमा का,
परंतु स्वयं उसके पद कहां?
मजबूर नहीं वो,इस क्रम को लेकर,
दौड़ता है ले बोझा, काले तुरंत जैसे,
रुलाता अपनी याद में तारों को,
फिर भी मयंक की
उसको परवाह कहां?
मयंक कर्दममेरठ (उ०प्र०)