कोरोना के कठिन समय में सजग सभी को रहना है।
समरसता-समता की धारा में जन-जन को बहना है।।
निजी स्वार्थ से ऊपर उठ,
जो जनसेवा व्रतधारी हैं।
भारत माता के मंदिर के
सच्चे वही पुजारी हैं।।
भूख-प्यास से मरे न कोई सत्ता का भी कहना है।
समरसता-समता की धारा में जन-जन को बहना है।।
कुछ लोगों की भूख बेबसी ,
कोरोना पर भारी है ।
उनकी चिंता करने की ,
हम सबकी जिम्मेदारी है।।
परहित है युगधर्म यही तो मानवता का गहना है ।
समरसता-समता की धारा में जन-जन को बहना है।।
नगरों से भी गाँव-गाँव में ,
अभी पलायन जारी हैं।
रोज कमाने-खाने वालों ,
में कितनी बेकारी है ।।
जर्जर तन,मन दुखी भूख से व्याकुल कोई उपहना हैै ।
समरसता-समता की धारा में जन-जन को बहना है।।
छीन न लेना नौकरियाँ
वैसे भी बेरोजगारी है ।
यही नियोक्ताओं की,
पूजा-अनुष्ठान-अग्यारी है।।
साथी अब तो निर्बल जन पीर सबल को ही सहना है ।
समरसता-समता की धारा में जन-जन को बहना है।।
डॉ गोविन्द द्विवेदी( प्रवक्ता, संस्कृत महाविद्यालय ,औरैया )सम्पर्क सूत्र - +91 9259475216