सूखे पत्तों से झड़ जाते ,
इक दिन दुक्खों के साये ।
मीत हृदय को धीरज देना,
पतझड़ ही मधुमास बुलाये ।
रूह जलाकर जिंदा रहना ,
जीवन की तो रीति नही ।
अंतिम हद तक आस न खोना,
मानव मन की जीत यही ।
खुद से कभी न रूठो मितवा ,
कोई कितना तुम्हें सताये ।
मीत हृदय को धीरज देना,
पतझड़ ही मधुमास बुलाये ।
सूखे पत्तों से झड़ जाते ,
इक दिन दुक्खों के साये ।
सुषमा दीक्षित शुक्ला