हमारे वास्ते कितना पसीना वो बहाता है
जहाँ पर है नहीं पानी वहाँ कश्ती चलाता है
गरीबों के लिए बैठा कई दिन से जो अनशन पर
सुना है खुद के बच्चों को विदेशों में पढ़ाता है
करे हर फूल को ज़ख्मी मगर लहज़ा मुलायम है
हुनर ये बागबाँ तुझको सिखाने कौन आता है
पुजारी रात के निकले मगर कुछ हैं परीशां से
सनाटे शोर करते हैं कि जुगनू टिमटिमाता है
उसूलों की लड़ाई में कहीं मैं जीत न जाऊँ
यही सब सोचकर मुझको मिरा अफसर डराता है
सुदागर नफरतों के सोच लो ये मुल्क भारत है
महोबत के यहां नगमें कबीरा गुनगुनाता है
ज़रूरी तो नहीं 'भोला' फतह हो ही चरागों की
अहम ये बात है इनसे अँधेरा खौफ़ खाता
मनजीत भोलाकुरुक्षेत्र, हरियाणा