जीने के लिए कौन कहता है कमबख़्त साँस चाहिए ,
हमसे पूछो तो बस तुम्हारी, एक याद ही काफी है !
रोने के लिए कौन कहता है शब्-ए-ग़म हो ज़िन्दगी में
हमसे पूछो तो बस तुम्हारी, एक रुस्वाई ही काफी है।
नहीं चाहिए महकते फूल मुझे , घर के गमलो में मेरे !
मेरे घर में तेरे गजरे की महक का,एहसास ही काफी है
क्या जरूरत है , घर में अपने संगीत ए सुर सजाने की
तेरे बजते पायलों के छनछन का, झंकार ही काफी है ।
कैसे कहु कितनी बेइंतेहा मोहब्बत है मुझे तुमसे ,
देखु तुझे मुस्कुराते हमेशा, इतनी खोवाइस ही काफी है
मत रूठो मुझसे तुम जरा-जरा सी नादानियों पे सनम
मुझे मारने के लिए तुम्हारी दर्द-ए-जुदाई ही काफी है ।
तपन कुमार