खिलौना
मेरा बचपन का
सबसे अच्छा दोस्त
मेरे तन -मन का उत्कर्षक
मेरे साथ दिनभर रहना
रात में बिछावन पर भी
इसका साथ ही होना
खूब याद है ।
मुकर्रर ,
इसकी कोई कोटि नही
इसका होना
हमारे सामर्थ्य पर निर्भर ।
मोहन के पास चाबी वाली गाड़ी ,
उसके
पिताजी नौकरी में थे
मेरे बाबा थे मजदूर
खरीद दिये थे
दशहरे में
मिट्टी का हाथी ।
मैं भी था आविष्कारक
बनाता था
कागज के नैया ,जहाज नाग
आदि ,
टीन के डिब्बे और सुतरी का फोन
मैंने भी बनाये थे।
खिलौना !
मुझमे रचनात्मकता संचालन का गुण भरता है ।
मेरे जैसा
मेरी अगली पीढी
भी बने आविष्कारक
स्वप्न कि
कुछ बड़ा ईजाद करे ।
निरंजन कुमार पांडेयअरमा लखीसराय -बिहार