(कविता-पृथ्वी)
पर्वत ,नदियाँ ,सुंदर फुलवारी विभिन्न आकार के जीव -जंतुओं का बोझ ढोती है
धात्री तुल्य पृथ्वी
है फर्ज कि
संतान बनकर
इसे
संतुलित रखें
ढेर सारे वृक्ष लगायें
बचाये रखें
सबका जीवन का आधार ।
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(कविता-शिखर)
तय लक्ष्य के लिए
प्रयासरत् हों
खाते न भय ,
रोकते न पैर ,
एक दिन पहूँच हीं जाते हैं
अभिलाषा की शिखर पर ।
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(कविता-कर्म )
कर्म हीं धर्म ,
कर्म हीं पूजा
-सी उपमा ग्रहण
किये कर्म ,
सारे सचर अचर का
मार्गदर्शन करते हुए ,
इसे चलायमान रखते है ,
इसके अस्तित्व को
करता आया है प्रस्तुत ।
निरंजन कुमार पांडेयअरमा लखीसराय -बिहार