या खुदा अमीर को अमीर रहने दो ,
बर्शते मुझमें थोड़े बस जमीर रहने दो ।
कुछ नहीं था उसमें मगर वो थी जरूर ,
मेरी वही जो पुरानी तकदीर रहने दो ।
उन्हे मिलते हों मेरे दर -बदर भटकने से सकूँ ,
या खुदा फिर मुझे ताउम्र फकीर रहने दो ।
ताकतों की खाव्हिश जाहिलों को होती है ,
तेरे इबादत के लायक मेरा शरीर रहने दो ।
कहर मुझपे बरसा जितना मन करे तेरा ,
उबर जाऊँ ये मुझमें तदबीर रहने दो ।
निरंजन कुमार पांडेयअरमा लखीसराय , बिहार