राह में हमको मिले रहबर कई
हो गए हैं दूर दिल से डर कई
हैं निशाँ कदमों के तपती रेत पर
गुम गए लेकिन यहाँ पे सर कई
आज मीरा बावली को क्या पता
हर गली पैदा हुए गिरधर कई
इक महल को थी उजाले की हवस
राजधानी में जले हैं घर कई
अब शहर में ही नहीं बिकती अना
गाँव में भी खुल गए दफ़्तर कई
मनजीत भोला,कुरुक्षेत्र, हरियाणा