कभी किसी ने सोंचा न था,
कि ऐसा दिन भी आएगा,
रोज भागने वाला भारत
भीतर घर के बैठ जाएगा।
चुनाव में जो लुटाते थे लाखों,
जाते थे घर-घर,जोड़ के हाथ,
वक़्त पड़ा तो छोड़ के भागे
दुखियारे वोटर का साथ,
रण में खड़े है,वीर हमारे
पुलिस,डॉक्टर,बैंकर भाई,
इस संकट में छूट गई है,
जाने कितनों की कमाई,
काश की पहले ही हो जाते
हम सचेत और होशियार,
पास हमारे कभी न आता,
ये विषाणु ले कर हथियार,
अब तक तुम घर मे बैठे हो,
रहलो भैया,कुछ दिन और,
भागेगा जरूर ये,वायरस
खुशियां होंगी चारो ओर।
कवि: सैयद इंतज़ार अहमदबेलसंड, सीतामढ़ी, बिहार