हमसे न पूछो की क्या हाल है अपना,
जिंदगी की हिफाज़त में घरों में कैद बैठे हैं,
सुनके हालत ए दुनियां, खुदा का शुक्रिया करते,
कि हम अब भी अपने घरों में महफूज़ बैठे हैं,
वतन अपना गुजारिश कर रहा हमसे,इसीलिए
वतन की हिफाज़त में घरों में कैद बैठे हैं।
ऐसे वक़्त ए नाज़ुक में,भी कुछ दोस्त हैं ऐसे,
जो दिलों में नफरत ए मज़हब के लेके बीज बैठे हैं।
दुआ है मालिक ए मौला,रहे महफूज़ ये दुनियां,
दिलों में जग जाए मुहब्बत,मुस्कराये फिर से ये दुनिया।
गरीबों मुफ़लिसों को ,मिले दो वक्त की रोटी,
सलामत रहें, हमारे जाबांज़ सिपाही,
महफूज़ रहें उनके बेटे और बेटी।
यही इल्तेज़ा है हमारी,कि रहो घर में सब अपने
जीतेंगे हम ज़रूर,देखेंगे फिर से नए सपने।
कवि:सैयद इंतज़ार अहमद
बेलसंड सीतामढ़ी, बिहार