थम सी गई है जिंदगी, आराम नहीं है
सब हो गये बेकार कोई काम नहीं है
सजती थीं महफिलें जहाँ , कभी दोस्तों के साथ
ठेके हुए सब बंद अब, कोई जाम नहीं है
घर में हुए सब बंद अब, रौनक नहीं कोई
दिन रात नहीं कोई , सुबह शाम नहीं है
सब रो रहे हैं आज बस, कोरोना का रोना
अब तक कोरोना का कोई अंजाम नहीं है
सबसे ज्यादा मजबूर अब, मजदूर हो गया
भूखे हैं बच्चे, खाने का सामान नहीं है
बेवश हुए सभी किसी का चल रहा ना वश
इसे रोकने का कोई इंतजाम नहीं है
आ जाये तुझे मौत, हो तेरा नाश कोरोना
दुनिया में तेरे लिए क्या, कोई शमशान नहीं है
कवि कुमार निर्दोष