अपने को अपना कहें , स्वीकारें भी अन्य।
अच्छाई जिसमें दिखे, बनाये उसे अनन्य।।१।।
आत्म निर्भर हम बने , चलें देश के साथ।
उत्पादक जो देश का , स्वीकारें बढ़ हाथ।।२।।
कर्मवीर मजदूर हम , आत्म निर्भर समाज।
रनिवासर मिहनतकसी , स्वागत नव आगाज।।३।।
स्वाभिमान रक्षण स्वयं , बढ़े सुयश सम्मान।
हर्षित मन जीवन मनुज , निर्भर खु़द इन्सान।।४।।
सक्षम हम सर्वांग से , कर सकते उद्योग।
रखें अन्य से आश क्यों , करें स्वयं सहयोग।।५।।
मिलती ख़ुद मिहनत खुशी,खिलती मुख मुस्कान।
नयी सोच नव जोश से, पूर्ण करें अरमान।।६।।
संसाधन हैं जो सुलभ , करो नया आगाज।
मिले राह नव प्रगति का , नव भविष्य आवाज।।७।।
दीन हीन हम क्यों बने,जब सक्षम सब काम।
साधें हम निज लक्ष्य को , जीवन हो सुखधाम।।८।।
धीर वीर गंभीरता , संकल्पित अभिलास।
बड़ी शक्ति है आत्म बल , रखो स्वयं विश्वास।।९।।
सभी समुन्नत हो स्वयं , बने समुन्नत देश।
बढ़े मान यश सम्पदा , स्वावलंब संदेश।।१०।।
पर निर्भरता मरण है , नित जीवन अपमान।
करती पौरुषता हनन , हरे वतन सम्मान।।११।।
अपनापन आभास मन , निर्माणक खु़द ध्येय।
है निकुंज जीवन कथा , स्वावलम्ब बस गेय।।१२।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली