अब ट्रेन ना चलाना नासूर बन रहा है,
ट्रेलर-ट्रकों में दबकर मजदूर मर रहा है,
जिसकी बदौलतों से वतन है आज चमका,
उन मुफ़लिसों को देखो तिल-तिल को मर रहा है|
ट्रेने चला दो अब तो मेंरा घर बुला रहा है,
शहरों में भूखे रहना दूभर सा हो रहा है,
कोरोना से बच गया जो कोरोना से बच गया जो,
आकर यहाँ पर देखो भूखों से मर रहा है|
मजबूरियों को देखो ट्रेने चला दो साहब,
हम गरीबों को अब हमारे घर पहुँचा दो साहब,
झेले बहुत हैं जिल्लत अब सहा ना जाए,
भूखे ही मर ना जाएँ माँ से मिला दो साहब|
हम गरीबों का अब नहीं कोई हाल पूछता है,
निकलो घरों से देखो राहों में बेहाल जूझता है,
सड़कें हुयी हैं छोटी, सड़कें हुयी हैं छोटी,
मजबूर पग ए मेंरा अब नाप डालता है|
बजरंगी लाल यादवदीदारगंज आजमगढ़ (उ०प्र०)