रोटी नहीं चीज़ है छोटी,
पता नहीं क्या काम कराती।
दर दर की ठोकरें खिलाती,
सब पापों को वही कराती।
रोटी ये भी बड़ी निराली,
लूट चैन सुख बन मतवाली।
जठरानल में सदा जलाती,
रोटी बस जीवन भरमाती।
बड़ी नशीली खेल खेलती ,
शोक विपद अपमान झेलती।
गली मुहल्ले गाँव शहर की,
फैला हाथों लेने रोटी।
लूट झूठ छल कपट छिछोरी,
सब रिश्तों को खोती रोटी।
न्याय धर्म ईमान बेचती,
बेटी बहनें माँ वदन नोचती।
गज़ब रोटिका अज़ब कहानी,
बना लालची कर मनमानी।
मज़बूरी का लाभ उठाती,
मज़दूरी का नाच नचाती।
बनी नशा दिन निशा रुलाती,
दीन धनी का भेद मिटाती।
गज़ब चीज़ कर चोर डकैती,
घूसखोर नित भ्रष्ट बनाती।
मायावी नागिन यह रोटी,
हालाहल विषपान कराती।
मौत बनी दुनिया यह फैली,
मीत कोराना बन ये रोटी।
ललचाती बहकाती रोटी ,
बचाने जान भगाती रोटी।
लाखों जनता फँसी बेकारी
पैदल जाती बिना सवारी।
छीना झपटी जनता रोटी ,
टूटी हाथ पैर तन बोटी।
हाहाकार मचाती रोटी,
जीवन मौत नचाती रोटी।
सब शिक्षा का कारण रोटी,
नेता सत्ता पालक रोटी।
हत्या झंझट कारण रोटी,
रिश्तों की संहारक रोटी।
आतंकी लालच यह रोटी,
दुष्कर्मों का चालक रोटी।
महाशक्ति दुनिया वश करती,
राजा रंक फँसाती रोटी।
बड़ी सयानी काली रोटी,
क्षुधित पीड़ दहलाती रोटी।
ऐय्याशों की बनी रागिणी,
छलती बाहों में रह रोटी।
कहीं मौत बन कहीं चहकती,
आहों से नित श्वासें भरती।
कटे मरे जन रेल पटरियाँ,
सड़कें मौत यान टकराती।
महिमा है रोटी की न्यारी ,
मारी मारी जनता भटकी।
कितनों ने दुनिया को छोड़ी,
रोटी नहीं चीज है छोटी।
कवि निकुंज यह देख त्रासदी,
दुर्गति घायल पाँव छाल की।
भगा रही दहशत बेकारी,
बस लाचारी चाहत रोटी।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली