आ जाओ जानेमन ! करो न देरी ।
करो न देरी ये अरमां थे मेरे,
तुम्हारी जुल्फों में छिप जाऊं मैं,
मेरी जिंदगी की कहानी हो तुम,
मेरी जुस्तजू हो जानेमन आ-
जाओ ना,आरजू की, मन्नतें कीं,
प्यार की कसमें खाईं, ना हुई मेरी ,
गुजारे कई बरस तेरी याद में,
आ जाओ जानेमन ! किस,
खता की सजा दे रही हो अब ,
लवों पर जान आ गई है मेरी ,
जप रहा अब सिर्फ़ नाम तेरा ,
तुम ही चुनौती बन गई हो मेरी,
सांसें तन से ग़र निकल जाएंगी,
विकल रह जाएगी, राख की ढेरी।।
दिनेश कुमार मिश्र "विकल"