बेईमानी फिजाओं को रोक लो।
बारूदी ढेर पर बैठी है ये दुनिया ,
सुलगती शिखाओं को रोक लो ।
वरगलाओ न इस भावी पीढ़ी को,
धधकती ज्वालाओं को रोक लो।
है इसी में भलाई हम सभी की ,
इन हैवानी जफ़ाओं को रोक लो।
बचाना जो चाहो देश को अपने,
बढ़ते इन घोटालों को रोक लो ।
कहलाओगे गुलाम फिर किसी के,
दहकती इन फिजाओं को रोक लो।
बचा लो भारत की आन 'विकल '
सिसकती बालाओं को रोक लो ।
बेचो न सोने की चिड़िया है देश,
इन पंजीकृत दलालों को रोक लो ।
रोक लो इन कुत्सित हवालों को,
उभरते इन सवालों को रोक लो।।
दिनेश कुमार मिश्र "विकल"