बढ़ रही है इस धरा पर , प्रतिदिन आबादी।
व्यर्थ ना बहाएँ जल को , करें ना इसकी बर्बादी।।
दुनियाँ को अब दिखा रहें हो , मूर्ख तुम तमाशे।
अब भी ना संभले तो , मरोगे एक दिन प्यासे।।
ना रहेगा जल तो , ना काम आगेगा भूषण।
मत फैलाओ हे! मानव , इस धरा पर प्रदूषण।।
प्रकृति सुख से हो रहें है , हम सभी अब वंचित।
इस धरा के गर्भ में , स्वच्छ जल है संचित।।
कर रहा है मानव अब , नित जल का दुरुपयोग।
फैल रही है इस धरा पर , नाना प्रकार के रोग।।
जल बिना ये जीवन ,ना जीना है आसान।
व्यर्थ बहाकर ना करें , जल का यूँ नुकसान।।
कहे कविराय गौतम , बहे अब गर्म बयार।
बूँद - बूँद जल बचाने को ,रहें हम तैयार।।
गौतम कुमारबारीचक, मुंगेर (बिहार)