कुछ पल साथ मेरे ,आन बिताओ ना।
गुलबदन तू ने छीना चैन-ओ-अमन,
मेरी ग़ज़ल का मक्ता हीबन जाओ ना।
सुब-सहर नाम लेता रहूं मैं तेरा,
मन -मंदिर में आकर ,बस जाओ ना ।
इल्तज़ा है, तुमसे फकत इतनी ,
प्यार के पल साथ मेरे ,बिताओ ना।
हूं 'विकल' वेदना से ,चंदन - सी बन,
मृगनयनी ! तुम समीप आ जाओ ना ।
नजरें सिर्फ तुम्हें खोजती हैं,सुख-
दायिनी,और अधिक तड़पाओ ना।
प्रेम में हूं गाफिल, इंतहा हो गई,
कहीं सब्र का बांध ,अब टूट जाए ना ।
मदिरालय का मार्ग बंद नहीं पर,
माधुरी तुम्हीं शाकी,बन आ जाओ ना।
रस ,छंद -वद्ध कविता-सी हो तुम,
आकर मुक्तक बन,कंठ-बस जाओ ना।
आभार सदा मानेगा 'विकल' जानेमन !
चिलमन से तो आज ,बाहर आओ ना।
दिनेश कुमार मिश्र "विकल"