जाने दो अब मुझे बुलाते क्यो हो?
श्वेत कफन मुझे चढाते क्यो हो?
खुद रोकर मुझे रूलाते क्यो हो?
हटा कफन अब निहारते क्यो हो?
चार कंधो चलन सिखाते क्यो हो?
लकडी की यूं सेज सजाते क्यो हो?
जिंदा पर तमाशा दिखाते क्यो हो?
जलाकर भी मुझे जलाते क्यो हो?
मयंक कर्दम - मेरठ (उ०प्र०)