स्वप्न देश में बसेरा बना कर ।
कितना अब हमें रुलाते हो तुम ।
कितना मुझे रोज सताते हो तुम ।
दिन रात सनम तेरी याद मे जलूं।
ख्वाब बन के सिर्फ अब आते हो तुम।
पास मुझे क्यूँ नही बुलाते हो तुम ।
चाँद पर मिलूँगी तुझे एक रोज मैं।
दूर जा के हर कदम क्यूँ रुलाते हो तुम ।
सुषमा दीक्षित शुक्लाराजाजीपुरम , लखनऊ (उ०प्र०)