थी राधा मन की अति भोली,
कान्हा पाँछे आयी दौड़ी,
सखी सहेली मंद हास कर,
कान्हा ! कान्हा! देखो बोली।
कमलनैन मुस्कान अधर मधु ,
मातु यशोदा कान्हा बोली ,
नटखट मेरो श्याम सलोने,
सता न प्यारी राधा गोरी।
मुरलीधर नटवर रंगीले,
ग्वालबाल सह यमुना तीरे,
रुष्ट राधिका ले सब सखियाँ,
रास रचाने आयी धीरे।
नंदलाल प्रमुदित लखि राधा ,
पंचम स्वर मुरली का साधा ,
झूमा सुन मन मुग्धा दौड़ी ,
वामांगी बन श्याम चकोरी।
पा राधे हर्षित मन माधव,
गोप गोपियाँ रास रचाए,
खग मृग सब निकुंज मनरसिया,
भज राधे कान्हा मन बसिया।
चन्द्रमुखी राधा लखि गिरिधर ,
बोल प्रिये किछु मन की बातें।
सुन केशव प्रिय लजा सलोनी ,
चिपकी कान्हा बस मुस्काती।
पावन गंगा भक्ति प्रेम जल ,
राधा नागर श्याम मनोहर ,
रखो सूध मोहन गिरधारी ,
हर गोविन्द विपद जग सारी।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"नई दिल्ली