छोड़कर साथ मेंरा,अलव़िदा कह गयी।
हम तो सीने से तुमको लगाए रहे,
तोड़ कर दिल मेरा बेवफ़ा हो गयी।।
हम तुम्हारे लिए स्वप्न बुनते रहे,
आस़मां औ धरा एक करते रहे।
पर न जानें क्यों तुम दूर होती गयी,
सारे रिश्तों के हर्फ़ों को धोती गयी।
श़ायद..हम ही कुछ तो नादान थे,
जो आस़मां औ धरा को मिलाते रहे।
मिल न पाया धरा से गगन आजतक,
"लाल" अपनी ही ज़िद को मनाते रहे।।
करके दूरी हमेशा-हमेशा की वो,
अपनी मंज़िल अलग वो बनाते रहे।
गम ज़ुदाई के हम तो हैं सहते रहे,
वो बेवफ़ाई की खुशियां मनाते रहे।।
आज़ भी उसके आने की आशा लिए,
उसी के प्यार की बोल-भाषा लिए।
आपके सामने गुनगुनाते रहे,
हम अधूरी कहानी सुनाते रहे।।
बजरंगी लाल यादव - दीदारगंज, आजमगढ़ (उ०प्र०)