बिन मौसम छायी घटा , वायु प्रदूषित आज।।१।।
भागमभागी जिंदगी , बढ़ते चाहत बोझ।
सड़क सिसकती जिंदगी , वाहन बढ़ते रोज।।२।।
चकाचौंध औद्योगिकी , नभ में फैला धूम।
जले पराली खेत में , मौत प्रदूषण चूम।।३।।
चहुँदिक् है फैला तिमिर ,भेद मिटा निशि रैन।
नैन प्रदूषित जल रहा , सुप्त प्रशासन चैन।।४।।
हृदय रोग बढ़ता प्रकोप , दृष्टि दोष फैलाव।
बढ़ा चिकित्सा गेह में , रोगी भीड़ जमाव।।५।।
दोषारोपण आपसी , तज अपना दायित्व।
पहन मुखौटा कर्मपथ , यायावर अस्तित्व।।६।।
अज़ब प्रदूषण है यहाँ , कामगार बन मीत।
होंगें बच्चे प्रदूषित , कर्मपथी निर्भीत।।७।।
निर्माणक भविष्य का , योगबली नीरोग।
भूकम्पन प्लावन सलिल ,शीतातप दुर्योग।।८।।
स्वार्थ कपट मदमत्त हो , झूठ शलाका चित्त।
नफ़रत निंदा नित व्यसन , करे लूट की वृत्त।।९।।
अन्तर्वेदित लालची , काटे नद नदी वृक्ष ।
जल निकुंज सुषमा विरत , दूषित भू अंतरिक्ष।।१०।।
प्राण वायु अत्यल्प भुवि , धुआँ जग आकाश।
ग्रसित सूर्य शशि लापता , मृत्यु करे उपहास।।११।।
तज विवेक नित सोच को ,भ्रष्ट प्रदूषक तन्त्र।
भोग विलासी सम्पदा , रच नेता षड्यंत्र।।१२।।
लक्ष लक्ष चल गाड़ियाँ , रात्रि दिवस विष छोड़।
हृदय घात अवसान पत्र , फिर ही लगता दौड़।।१३।।
कवि "निकुंज" अन्तर्व्यथित , ज़हरीला ले श्वाँस।
रोग शोक मद नित मना , ज़ख्मी दिल्ली वास।।१४।।
चेतो, अब भी वक्त है , नेतागिरि तज स्वार्थ।
कर उपाय विध्वंस विष , जीओ जग परमार्थ।।१५।।
मिटा प्रदूषण साथ में , प्रजा संग सरताज।
शासन सह जनता वतन ,रोपण तरु आगाज।।१६।।
स्वयं सजग जन जागरण , कर प्रदोष उपचार।
पुनः सजाएँ हम प्रकृति , जो जीवन आधार।।१७।।
कुदरत का अद्भुत सृजन,भू जलाग्नि नभ वात।
जाति धर्म भाषा विविध , जीवन नया प्रभात।।१८।।
बने स्वच्छ पर्यावरण , निर्मल हो परिवेश।
हो नीरोग जन देश का , सुखद सरल संदेश।।१९।।
बने मीत निज जिंदगी , गढ़ें चारु संसार।
सप्त सरित पावन धरा , प्रगति सिन्धु आचार।।२०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुुुंज" - नई दिल्ली