कोरोना ललकारता , मौत खड़ी चहुँओर।।१।।
दिल्ली की हालत बुरी , शासन नहीं विचार।
राजनीति सतरंज पर , महाराष्ट्र लाचार।।२।।
भाग रही लिप्सित प्रजा , धन अर्जन सम्मान।
जीओगे तब तो सुलभ , रिश्ते यश अरमान।।३।।
अपने खोते जा रहे , लाश नहीं पहचान।
जला रहे लाशें इतर , क्या जीवन इन्सान।।४।।
लेखा जोखा मौत का , छिपा रही सरकार।
अस्पताल लाशें नहीं , कोई जिम्मेदार।।५।।
आवाहन सरकार की , संयम बैठो गेह।
कामगार माने नहीं , भागे पैदल देह।।६।।
आज भयावह त्रासदी , कैसे हो प्रतिकार।
सोचे पूरा देश अब , कोरोना की हार।।७।।
कठोर कदम निर्माण हो , प्रतिपालन अनिवार्य।
प्यारी है यदि जिंदगी , दूर स्वच्छ नित कार्य।।८।।
क्या महफ़िल क्या आशियाँ,सभी आज बेकार।
कंधे देने को नहीं , अपने भी दो चार।।९।।
मानवता का काल बन, आया है अवसाद।
अब भी संभलो रे मनुज, प्रकृति करो आबाद।।१०।।
जन्मों का सद्कीर्ति फल , मानव जीवन प्राप्त।
चलो बचाएँ जिंदगी , तभी बनेंगे आप्त।।११।।
कुदरत का ऐसा प्रलय , लाखों का संहार।
छिन्न भिन्न निज कोख को,देख लिया प्रतिकार।।१२।।
सृष्टि रची परब्रह्म ने , बस मानव कल्याण।
वही हताहत मनुज से , कैसे हो फिर त्राण।।१३।।
उजड़ रहा मानव चमन, खुशबू हीन निकुंज।
अरुणिम आभा हो पुनः , कुसमित भँवरा गूंज।।१४।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली