धीरज साहस आत्मबल, बिना नहीं उत्कर्ष।।१।।
मधुशाला संघर्ष का , तिक्त पान आनंद।
सृजन लोक नव जिंदगी , पुष्प पराग मकरन्द।।२।।
आवश्यक है हौंसला, आरोहण सोपान।
निर्भर नित तप साधना, सुख वैभव यश मान।।३।।
बने सदा हम साहसी, मौन धीर गंभीर।
संकल्पित निज ध्येय हो , एक दृष्टि रण वीर।।४।।
क्रोध , लोभ निज हीनता , तजें रखें विश्वास।
समय सुधा रस पान का, निश्चय हो आभास।।५।।
सुलभ प्राप्त यश सम्पदा , कहाँ मिले आनंद।
तपे स्वर्ण जब अग्नि में,शोभित मणि कर कण्ठ।।६।।
बनो पार्थ विश्वास सम , करो लक्ष्य का भेद।
जीतोगे हर लक्ष्य को , रहो शान्त संवेद।।७।।
सोचें परहित कर्म को , राष्ट्र धर्म उत्थान।
सार्थक जीवन हो तभी, त्याग शील बलिदान।।८।।
युगधारा जीवन सरित , सुख दुख मानो तीर।
ऊँच नीच जीवन मरण , जीते वे रणवीर।।९।।
जीवन है अनमोल धन , है निकुंज संदेश।
नित वसन्त पतझड़ परे , नव अरुणिम परिवेश।।१०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली