भुलाकर प्यार सारा तुम मुहब्बत माँ (भारत) से कर बैठे।
निभाने को कसम, संग, तुमने जीवन भर की खायी थी,
लुटाकर जान तुम तो प्यार हिन्दोस्तां से कर बैठे।।
अभी छूटी न थी मेंहदी महावर भी न धूमिल थे,
मेंरे हाथों के कंगन के अभी नग भी न छूटे थे।
मेंरी शादी की माला के अभी ना पुष्प थे सूखे,
तिरंगे में लिपट आए जो शायद मुझसे रूठे थे।।
खता मुझसे हुयी थी क्या, क्या अपराध था मेरा,
तोड़कर प्यार का बन्धन लिया परलोक में डेरा।
सजायी थी मेंरी माँगें जो तुमने प्यार से उस दिन,
धुलाकर चल दिए हो तुम तो अब सिन्दूर वो मेंरा।।
तुम्हारे बिन जहाँ में अब मेंरा रह कौन जाएगा,
मैं जाऊँगी जिधर अपना न कोई नज़र आएगा।
तुम्हारे बिन ए बोझिल ज़िन्दगी कैसे मैं काटूँगी,
सभी के मुख से अब विधवा का मेंरा नाम आएगा।।
बजरंगी लाल - दीदारगंज, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)