बेजु़बान थी गर्भ से , मरी मनुज दुष्कर्म।।१।।
कैसी ये हैवानियत , कैसा मानव चित्त।
हथिनी को बारुद खिला , दानवीय आवृत्त।।२।।
युग युग से मानव सखा , धीर वीर बलवान।
उस गज का दुश्मन यहाँ , बना मनुज शैतान।।३।।
ऐरावत देवेन्द्र का , लक्ष्मी प्रिय गजराज।
जिसे बचाये हरि स्वयं , दुश्मन बना समाज।।४।।
शाकाहारी गज सदा , शान्ति मन्द गतिमान।
साथ दिया सम्मान बन ,जीवन भर इन्सान।।५।।
गर्भवती हथिनी मरी , लोभी मनुज प्रपंच।
लाँघी मर्यादा सभी , दया न आयी रंच।।६।।
प्रकृति विरोधी चिन्तना,बदतर नर पशुतुल्य।
शील कर्म नैतिक पतन,क्या जाने मानवमूल्य।।७।।
गजसेना चतुरंगिनी , सेना का आधार।
बलिदानी रक्षण वतन , कर दुश्मन संहार।।८।।
राजाओं की शान जो , कुदरत का वरदान।
भीमकाय असहाय गज , ली मानव ने जान।।९।।
क्रुर हुआ पशु जाति पर ,जाने क्यों इन्सान।
स्वार्थ सिद्धि मद मोह में , बना आज हैवान।।१०।।
मरी पड़ी हथिनी रही,तीन दिवस जल कुण्ड।
मिले न्याय गजगामिनी, अपराधी को दण्ड।।११।।
लखि हत्या कवि कुंजरी , है निकुंज वीरान।
सजा मिले खल कठिनतर,दानव नर शैतान।।१२।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली