सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)
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सावन का वृक्षों के बिना कोई वजूद नहीं - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
सावन का वृक्षों के बिना कोई वजूद नहीं - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मंगलवार, जुलाई 07, 2020
यूं तो सावन की अपनी कई पहचाने हैं, कई महत्व हैं, उसमें एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि सावन माह का बेसब्री से इंतजार देश का वन विभाग व कई एनजीओ भी करते हैं। मानसून की आहट से ही देश में पर्यावरण से जुड़ी संस्थाएं सक्रिय हो जाती हैं।
मौसम की दृष्टि से वृक्षारोपण के लिए सामान का मौसम सर्वोत्तम होता है।
यूं तो सावन की अपनी अलग ही परिभाषा है। इसकी पहचान के तीन मुख्य कारण है पहला भक्ति भाव दूसरा प्रणय भाव और तीसरा नैसर्गिक सौंदर्य। सभी जानते हैं इस माह मे भक्ति भाव शिव जी के प्रति होता है। तो प्रणय भाव प्रेमी युगल को सीधे तौर पर वैज्ञानिक कारण से एक दूसरे से आकर्षित होने के कारण होता है।
हरियाली हरी लहलहाती दूर तक सुहावनी वादियां, जो अनायास ही मानव मन को अपनी ओर खींच लेती है। ऐसा नैसर्गिक सौन्दर्य हमारे हरे भरे वृक्षो की देन है।
हम सभी को आज जरूरत इस बात की है कि हम सच्चे मन और कर्म से लाखों-करोड़ों पौधों के स्थान पर चाहें एक ही पौधा लगाएं और उसकी तब तक देखभाल करें जब तक कि वह बड़ा ना हो जाए, क्योंकि अपने और अपनी संतानों तथा समस्त मानवता के लिए धरती को हरा-भरा बनाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है।
सावन के महीने में वृक्ष लगाना सबसे बेहतर तो वैज्ञानिक कारणों से ही है। सावन में बरसात की चार अवस्था जो कि 4 माह के रूप में जानी जाती हैं, आषाढ़, सावन, भादों, आश्विन। सावन बरसात की दूसरी अवस्था के रूप में है, अर्थात आषाढ़ मे बारिश की शुरुआत होने से धरती गीली हो जाती है और सावन आने तक मुलायम हो जाती है।
सावन वृक्षारोपण के लिए अनुकूल माना जाता है इसमे कभी बारिश तो कभी धूप आवश्यक रूप से होती है। सावन मे वृक्षों को पोषण कुदरत ही देती है। इन दिनों मानव पर निर्भर नहीं रहते वृक्ष। फिर सावन में लगाए पौधों को 2 महीने बाद यानी कि भादो, अश्विन में भी अनुकूल जलवायु मिलती है तब तक उनकी जड़ें मजबूती पकड़ लेती हैं। तब तक उनकी अच्छी वृद्धि हो चुकती है, यही मुख्य कारण है कि सावन को वृक्ष लगाने के लिए सर्वोत्तम माना जाता रहा है।
जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे देश का मौसम भी बदल रहा है। अपने आसपास के इलाकों को हरा भरा बनाने का दायित्व हमारा है। कुदरत के प्रति अपने प्रेम को वृक्ष लगाकर, परवरिश करके प्रदर्शित किया जा सकता है। इन पौधों की अनुमानित मजदूरी देकर आप अपना एक हक अदा कर सकते हैं। पौधों की देखभाल के लिए स्वयं का समय, खाद पानी, श्रमदान के रूप में दे सकते हैं।
पुराने जमाने में पेड़ पौधे लोगों की जिंदगी का अहम हिस्सा थे। आज भी भारतीय घरों में तुलसी का पौधा लगाना लगभग अनिवार्य है।
शादी के मंडप में केले के पत्ते सजाना, नवजात के जन्म पर घर के बाहर नीम की टहनियां लगाना, हवन में आम की लकड़ियों का प्रयोग जो कि वृक्षों की उपयोगिता बताते हैं।
वनों का महत्व हमारे जीवन में अनेक प्रकार से आंका जाता रहा है, जहां एक और पर्यावरण संतुलन वृक्षों से प्राप्त होता है वहीं दूसरी और वनवासियों की अनेक आवश्यकताएं पूरी होती हैं।
हमारी समूची भारतीय संस्कृति वृक्ष पूजन से जुड़ी है इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं।
तो देर किस बात की आज ही संकल्प ले की कम से कम एक वृक्ष लगाकर सावन को सार्थक करने मे अपनी भूमिका को बखूबी निभाएँगे।
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