ग्रीष्मातप आहत धरा , बरसे नभ घनश्याम।।१।।
पावस ऋतु स्वागत करे , बढ़कर सावन मास।
शिव सुन्दर भावन जगत , सावन मन आभास।।२।।
चमक रही घन बिजुरियाँ , दादुर मुख मुस्कान।
चला कँवरिया जलभरण , हरिहर भोले गान।।३।।
सुख दुख का गमनागमन , नवजीवन सौगात।
पतझड़ बस अहसास बन , फिर सावन बरसात।।४।।
शीतल मंद समीर नित , कहीं धूप कहँ छाँव।
उमर घुमड़ बरसे घटा , समझो सावन भाव।।५।।
प्रीत मिलन में विरहणी , कुढ़े ज्येष्ठ आषाढ़।
सावन देखे दिल खिले , आए चाहे बाढ़।।६।।
वर्षा रानी चारुतम , सज सोलह शृंगार।
पीर गमन व्याकुल हृदय , मेघ नैन जलधार।।७।।
उमड़ घुमड़ गरजे घटा ,रिमझिम बरस फुहार।
प्रिया संग अठखेलियाँ , भींगे करे दुलार।।८।।
मदमाती नदियाँ सभी , लहरों का ऊफान।
जलप्लावन प्रसरित धरा , सदमे में इन्सान।।९।।
नर पादप मृगद्विज सभी , प्रकृति मातु धर हाथ।
सावन भादो खुशनुमा , मिल बर्षा के साथ।।१०।।
मनमयूर नर्तन करे , सपनों के नवरंग।
प्रियतम आलिंगन मगन , नवरस जलधि तरंग।।११।।
श्रावण प्रिय मनुहार को , देख मिलन प्रिय आश।
मधु सावन शिव चारुतम , दर्शन मन कैलाश।।१२।।
ख्वावों की बन मल्लिका , जीवन का अहसास।
विरह मिलन मधुमास का ,बस सावन है आस।।१३।।
मन मयूर नाचे प्रिया, सावन प्रीत बहार।
बनी चकोरी साजना , सज सोलह शृङ्गार।।१४।।
धीमा धीमा बरसता , गन्धमाद घनश्याम।
भींगी भींगी कामिनी , खोयी प्रिय अभिराम।।१५।।
आया सावन झूम के , मादक घन बरसात।
गंगाधर अर्पण सलिल , सजन सजे बारात।।१६।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली