अरुणिम नित प्रेरक मनुज , राजा हो या रंक।।१।।
मधुरिम नित आचार हो , कोमल हो मन भाव।
उत्साह सदा हो कर्म में , बढ़े बिना दुर्भाव।।२।।
मंगलमय हो चिन्तना , संकल्पित हो ध्येय।
अगर स्वयं विश्वास हो , सिद्धि विजय हो गेय।।३।।
उषा किरण की लालिमा , बने सदा नवशक्ति।
बढ़े सभी कर्तव्य पथ , राष्ट्र प्रेम मन भक्ति।।४।।
तजो हिंस्र दानव प्रकृति , अहंकार उन्माद।
निर्दोषों की ज़ान ले , ख़ुद करते बर्बाद।।५।।
मृगतृष्णा असीमित है , कारण नित क्रोध।
करो नियन्त्रण काम को , बढ़ो सुपथ नवशोध।।६।।
बन उदार नव किरण सम , करती जग आलोक।
स्वार्थ साथ परमार्थ भी , हरता जीवन शोक।।७।।
रखो स्वच्छ सुष्मित प्रकृति,सुरभित शान्ति निकुंज।
दो पल की यह जिंदगी , कर अमोल यश पूंज।।८।।
डॉ. राम कुमार झा ''निकुंज" - नई दिल्ली