करें सुरक्षित हम उसे, खिले खुशी संसार।।१।।
हरीतिमा छाये धरा, स्वच्छ मिले नित वायु।
रोगरहित प्राणी जगत, बढ़े जिंदगी आयु।।२।।
वन। पादप कर्तन धरा, बंद करें तज स्वार्थ।
तरुकानन पर्वत सरित, बस जीते परमार्थ।।३।।
अंधे बन हम लोभ में, किया प्रकृति का नाश।
कहर प्रदूषण तड़पते, धरती अरु आकाश।।४।।
मानवता नैतिक पतन, भौतिकता उत्थान।
हरी भरी धरती फलित, है बंजर सुनसान।।५।।
कोराना अवसाद जग, प्रकृति नाश परिणाम।
छीन रहा जीवन धरा, महाकाल अविराम।।६।।
चढ़े प्रदूषण की बली, धरती जल आकाश।
वायुप्रदूषण स्वार्थ में, नित पाने की आश।।७।।
छीन गयी मुस्कान जग, छायी कुदरत कोप।
तूफ़ान बाढ़ भू स्खलन, भूकंपन जग थोप।।८।।
मलिन आज सरिता सलिल, शुष्क पड़े पाषाण।
बिना जन्तु पादप विहग, है निकुंज निष्प्राण।।९।।
चाह अगर जीवन सुखद, वृक्ष लगाएँ आज।
हरी भरी हो भू प्रकृति, विमल क्षितिज आगाज़।।१०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली