अन्तर्भावों में घुल जाऊँ मैं,
ऋतुराज गमन सावन आया,
प्रेमपत्र वियोग लिख पाऊँ मैं।
मुस्कान अधर ओझल मुख में,
रनिवासर नैन अश्क बहाऊँ मैं,
घनघोर घटा छायी नभ में,
रतिराग हृदय लिख पाऊँ मैं।
हरियाली कुसुमित वन सुरभित,
गन्धमाद हृदय सहलाऊँ मैं,
उन्नत उरोज भींगी काया,
रतिराग प्रबल लिख पाऊँ मैं।
मैं चन्द्रमुखी शृङ्गार सजी,
चारु पलक बलम छिपाऊँ मैं,
निष्ठुर चकोर अभिसार मगन,
लखि वैर मनसि लिख पाऊँ मैं।
कामदेव बाण घायल चितवन,
कबतक विरह लेप लगाऊँ मैं,
अविराम हृदय विरहानल में,
क्या जल प्रेमपत्र लिख पाऊँ मैं।
कुसमित निकुंज निर्मेषित तन,
सुनीति यतन रत समझाऊँ मैं।
प्रिय लूट हृदय संकोच विरत,
जीवन वीरान जी पाऊँ मैं।
साजन जीवन थी स्वर्ग परी,
बिन चन्द्र प्रभा सज पाऊँ मैं,
जुगनू आशा की ज्योति बने,
कबतक बोलो बहलाऊँ मैं।
पाटल कुसुमों पर रसिक भ्रमर,
गुंजित साजन सह पाऊँ मैं,
कल कल निनाद बहती सरिता,
चिढ़ प्रीत व्यथा लिख पाऊँ मैं।
कहूँ किससे अन्तर्मन पीड़न,
मधुश्रावण प्रीत लगाऊँ मैं,
बारिश रिमझिम बहलाए पवन,
प्राणनाथ विरत लिख पाऊँ मैं।
हे मन चकोर नैनाश्रु नयन,
पत्रवाहक मेघ बनाऊँ मैं।
कृशकाय प्रिया प्रिय आश मिलन,
लिख प्रेम पत्र भिजवाऊँ मैं।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली