ख़्वाबों की कूची से सारे ख़ूब सजाए हैं मैंने
आज सँवर जीभर , ग़म को भूल, खुशी से झूम ज़रा
दिल की नदिया देख नयन से फूल गिराए हैं मैंने
हवा, धूप, बादल, वर्षा, सबका होता अंदाज़ अलग
फिर भी धरती पर अपने जज़्बात बिछाए हैं मैंने
दुख की आँधी सुख के छप्पर उड़ा-उड़ाकर हार गई
जितनी बार उड़े हैं, उतनी बार चढ़ाए हैं मैंने
ख़ूब पुकारा, हे प्रियतम उस पार रहे तुम, आ न सके
इसीलिए काग़ज़ पर लिख पैग़ाम बहाए हैं मैंने
जब तक तन में साँस रहेगी मुझे प्रतीक्षा करनी है
उम्मीदों के दीप अभी तक नहीं बुझाए हैं मैंने।।।।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)