जीभर आज दुलारा मुझको बरसों बाद
क़िस्सा जो छोड़ा था दिल की महफ़िल में
करके याद, सँवारा मुझको बरसों बाद
उसका मेरा जो कुछ भी था अलग-अलग
लगने लगा हमारा , मुझको बरसों बाद
छीन उजाला जो जज़्बों पर काबिज़ था
छोड़ गया अंधियारा, मुझको बरसों बाद
संन्यासी मन हुआ रूह की दुनिया में
फिर से मिला इशारा मुझको बरसों बाद
हुआ मेहरबाँ ग़म भी अब तो दूर गया
खुशियों ने पुचकारा मुझको बरसों बाद।।।।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)