तो जीवन रूपी गाड़ी ये बेकार हो जाती है
जब भाई का भाई से उठ जाता है भरोसा ,
तो आंगन के बीच खड़ी दीवार हो जाती है ।
छूट जाते हैं पीछे सभी रिश्ते और नाते ,
जब जिंदगी की तेज ये रफ्तार हो जाती है ।
डूब जाती साहिल पर भी आकर के नौका ,
जब पुरानी और जर्जर ये पतवार हो जाती है ।
क्या खूब कहा है ये किसी कहने वाले ने ,
मन के जीते जीत मन के हारे हार हो जाती है ।
उठाती है अवाम बहुत ही कष्ट और तकलीफे ,
जब भृष्ट और निकम्मी ये सरकार हो जाती है ।
कर ही लेता है वो हर मुकाम को हासिल ,
चौबीस घण्टे जिसके सिर धुन सवार हो जाती है ।
अगर बुझी हुई आग को दे दी जाये हवा ,
तो वो भी दहकता हुआ अंगार हो जाती है ।
जब चलता है आदमी का सिक्का यारों जग में ,
सारी दुनिया साथ देने को तैयार हो जाती है ।
क्या खाक करेगी रखवाली तुम सोच कर देखो,
जब बेईमान बिलाई दूध की पहरेदार हो जाती है ।
जब लगती है दिल पर कोई ठेस ये गहरी ,
तो कलमकार की कलम भी कटार हो जाती है ।
कभी कोशिश करने से भी नहीं हो पाती "पंवार"
कभी बिना किये ही जग में जय - जयकार हो जाती है ।
समुन्द्र सिंह पंवार - रोहतक (हरियाणा)