ऐ मन को तु मन से बहला
मन ही मन मे टूट चुका हु
इसकी कोई ईलाज बता
ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला
ऐ मन को तु मन से बहला।
सोच रहा हु आश लगाकर
छोड़ गई क्यूँ मन बहलाकर
मन ही मन से आवाज यही है
दूर नहीं तु आस-पास यही है
ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला
ऐ मन को तु मन से बहला।
भेज रहा हु, चाँद तुझे मैं
देकर आना, पैगाम उसे ऐ
पहले से तो, टूट चुका हु
बस आखिरी एक आश लगा रखा हू
ऐ चाँद उसे तु ढूंढ के ला
ऐ मन को तु मन से बहला।
डॉ. रवि कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)