मगहर की गलियों तक,
खोजता है कबीर,
एक बुरा आदमी,
अपनी तरह!
जो एतराज कर सके,
मुल्ले की बांग पे,
जो कह सके,
मन को,
मंदिर से बेहतर!
जो सुन सके,
चक्की में पिसती,
मानवता की आवाज,
जो गा सके,
प्रेम का राग!
बनारस की सड़कों से,
मगहर की गलियों तक,
खोजता है कबीर,
एक बुरा आदमी,
अपनी तरह।
राजीव कुमार - जगदंबा नगर, बेतिया (बिहार)