तकलीफे लिखने को बेताब हैं
कहो तो बता दू दुनिया से की,
तुझे तकलीफे मिली बेहिसाब हैं।
आखिर क्यों? मेरी कलम तेरी,
तकलीफे लिखने को बेताब हैं
तू यू ही सहती रही हर तकलीफें,
आखिर उसमें ऎसी क्या? बात है।
आखिर क्यों? मेरी कलम तेरी,
तकलीफे लिखने को बेताब हैं
तू अपनी तकलीफ़ों के ऊपर,
क्यों? चढ़ाई हुई काली नक़ाब हैं।
आखिर क्यों? मेरी कलम तेरी,
तकलीफे लिखने को बेताब हैं
तेरी हर तकलीफ़ों के ऊपर से,
मुझे क्यों? हटाना ये नकाब हैं।
आखिर क्यों? मेरी कलम तेरी,
तकलीफे लिखने को बेताब हैं।
शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)