तुमसे ही हर मौसम था सब कुछ तुम साजन थे।
तुम से ही तो जगमग इस घर की दीवाली थी।
तुम सँग ही तो खेली वो सांचे रँग की होली थी।
वो सुबहें कितनी प्यारी जब थे तुम्हे जगाते।
पर कभी कभी तो तुम ही चाय बना कर लाते।
वो शामें कितनी प्यारी जब साथ घूमने जाते।
कभी कभी मोबाइल पर घर के समान लिखाते।
हर छुट्टी वाले दिन हम सबको कहीँ घुमाते।
खाना, पिक्चर, शॉपिग तुम जी भर प्यार लुटाते।
हम सब अक्सर साथ साथ मंदिर जाया करते थे।
जब इक दूजे के खातिर फरियाद किया करते थे।
साथ बैठ कर टी वी जब हम देखा करते थे।
घर के सारे प्लांनिग जब साथ किया करते थे।
पल पल जब फोन तुम्हारा आता ही रहता था।
तब हर कोई तुमको दीवाना ही कहता था।
तुम थे बसन्त मेरे तुम ही मेरे सावन थे।
तुम से ही हर मौसम था, सब कुछ तुम साजन थे।
सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उ०प्र०)