जीवन की दृढ़तर कड़ी , रक्षक विपदा गेह।।१।।
झंझावातों से भरा , संजीवन है मित्र।
दोस्त न केवल है व्यसन ,प्रेरक भाव पवित्र।।२।।
तन मन धन अर्पण सदा , नहीं द्यूत संग्राम।
रिश्ते नाते सब वृथा, पा सुमीत अभिराम।।३।।
मीत हृदय जाने सखा,गुप्त सकल मन बात।
जाति धरम सबसे अलग, दोस्त बने सौगात।।४।।
दोस्त सदा पावन कड़ी , रिश्तों में सरताज।
गज़ब समर्पण मीत का,कौन्तेय अंगराज।।५।।
श्रेष्ठ जटायु सम सखा , श्रीराम सखा सुग्रीव।
मीत विभीषण भील सम,पार्थ कृष्ण संजीव।।६।।
तजे स्वार्थ परमार्थ में , सुख दुख में दे साथ।
करे प्रशंसा सभा में , विपद बढ़ाए हाथ।।७।।
दोस्त बने सम्बल सदा , बने सारथी धर्म।
माँ ममता दे ढाल बन , प्रेरक नित सत्कर्म।।८।।
शीतल मृदु सम्बन्ध यह , अन्तर्मन सद्भाव।
मेरुदण्ड है जिंदगी , औषधि है हर घाव।।९।।
दुर्लभ ऐसा दोस्त जग , पावन हृदय उदार।
लोभ कपट बस झूठ अब, मीत रहा संसार।।१०।।
सदाचार से विरत जन ,धोखा दे जग मीत।
प्रीति नीति से वंचना , समझे जीवन जीत।।११।।
दोस्ती एक रिश्ता यहाँ , जीते मन संसार।
गंगा सम पावन विमल , जीवन सुख जलधार।।१२।।
दोस्त भाई मातु पिता , जीवन का आलोक।
जीवन की वह आईना , अस्मित मुख हर शोक।।१३।।
कवि निकुंज जीवन सुलभ,मीत मिले नवनीत।
कृष्ण सुदामा सम सखा , पाएँ मधुरिम प्रीत।।१४।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली