दया धर्म करुणा हृदय, परहित नित अनुकूल।।१।।
रहें बिना दुर्भाव का, मानस बने उदार।
भारतमय अन्तस्थली, फैले प्रीत बहार।।२।।
राष्ट्र पूत बलिदान से, लिपट तिरंगा गात्र।
पल दो पल की जिंदगी, दुर्जय बने सुपात्र।।३।।
लोकतंत्र अभिराम जग, संविधान हो श्रेष्ठ।
ईश्वर में विश्वास हो, ज्ञानवान हो ज्येष्ठ।।४।।
शीतल भाष सुभाष से, पाए जग संतोष।
जीओ भुवि परमार्थ में, दूर भगाओ रोष।।५।।
बाँटो खुशियाँ और को, परमुख ला मुस्कान।
कर सेवा तन मन विभव, बनो दीन भगवान।।६।।
परहित सुख अनमोल है, हरो सदा जन शोक।
करो मनुज जीवन सफल, रहे कीर्ति तिहुँलोक।।७।।
राष्ट्र-धर्म सेवन प्रजा, सच्चाई ईमान।
प्रकृति मातु सुष्मित करो, बनो मनुज इन्सान।।८।।
चन्द्र प्रभा सम शान्ति जग, शीतल शुभ मन भाव।
सबका हित सब हो सुखी, मिले दंश नहि घाव।।९।।
कविरा अर्पित भारती, आतुर खिले निकुंज।
गन्धमाद सुरभित वतन, हो भारत जय गूँज।।१०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली