उमातनय परमेश कुरु, स्वस्ति लोक गणराज।।१।।
परशु पाणि!पूजन करुँ, लम्बोदर विघ्नेश।
गजमुख वरदायक नमन, गौरीपूत गणेश ।।२।।
एकदन्त गिरिजा तनय, शरणागत करुणेश।
रक्ताम्बर तनु देह है, दयावन्त अखिलेश।।३।।
मंगलमय गौरीतनय, गणनायक बुद्धीश।
वाहन मूषकराज है, जगपालक जगदीश।।४।।
पंचदेव में पूज्य हैं, गणभूतों के नाथ।
सकल मनोरथ पूर्ण कर, बुद्धि विधाता साथ।।५।।
जय गणेश सानंद कर, कर सुखमय संसार।
पापों से जग दूर कर, विश्व शान्ति उपहार।।६।।
राग द्वेष छल लोभवश, फँसे हुए जग लोग ।
बुद्धि विनायक त्राण कर, तजें स्वार्थ हठयोग।।७।।
मातु पिता चहुँ घूमकर, गणपति देव प्रधान।
ज्ञान बुद्धि सह तेज बल, दान करो भगवान।।८।।
देवासुर चाहे मनुज, तन मन करते ध्यान।
सब विघ्नों को पारकर, पाते हैं सम्मान।।९।।
दीप जला आरत करूँ, ले पूजन का थार ।
कवि निकुंज संताप हर, भवसागर से पार।।१०।।
क्षमा करो हे गणपति, कर्महीन कृत पाप।
सत्पूजन तेरा करूँ, होऊँ मैं निष्पाप।।११।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली