रहें नीति सत्कर्म पथ, मिले प्रीति पहचान।।१।।
रखें सदा विश्वास मन , पाएँ प्रभु आशीष।
रथ विवेक मति सारथी , विनत झुकाएँ शीश।।२।।
निज निर्माणक ख़ुद बनें , धैर्य बने पतवार।
साहस जीवन नाव हो, लक्ष्य सरित हो पार।।३।।
उपकारी जीवन बने , भूलें लोभ प्रपंच।
सजग सरल गतिमान पथ , चढ़ें सफलता मंच।।४।।
मनःशान्ति चल ध्येय पथ, बन सहिष्णु संघर्ष।
आएँगे बाधा विविध , तोड़ बढ़ो उत्कर्ष।।५।।
मितभाषी श्रोता बने , बोले भाष सुहास।
प्रीति नीति नवनीत बन , बचें सदा उपहास।।६।।
मातु पिता आशीष। ले , बढ़ें प्रगति पद मान।
तेजस्वी जो श्रेष्ठ हों , पाएँ ज्ञान महान।।७।।
लक्ष्य सदा उत्थान का , सेवा भक्ति स्वदेश।
हरी भरी वसुधा बने , मानवता संदेश।।८।।
साधु समागम भाग्य से , पाए मानव लोक।
गंगा सम पावन हृदय , जीवन हो आलोक।।९।।
साधु सन्त संसार में , दर्पण रहे समाज।
सत्संगति जीवन विमल , नित नवयुग आगाज।।१०।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली