अहर्निशं कुरु नित्यमरार्तिकम्।
पूज्यं गानं मधुरं राष्ट्रमिदं ,
सुरभितनिकुञ्जमकरन्दसुखम् ।।
जयतु जयतु जय संस्कृत भाषा,
सहज सुबोधा कीर्ति विलासा।
वाणी रम्या शील विनीता,
संगणिका गीर्वाग्पुनीता।।
मधुरा सरला सरसा भाषा,
चिरप्राचीना जगति सुभाषा।
संस्कारैः युक्ता प्रमाणिका,
सहजा विज्ञानीति विलासा।।
सदाचारयुक्ता नैतिकता,
राष्ट्रैक्यभावप्रीतिपूजिता ,
ममता समता करुणायुक्ता,
रीति गीति रुचिरा उद्गीता।।
जननी धरिणी सर्वविभाषा,
नियमाबद्धा मनसि सुवासा,
चारुतमा श्रुतिवेदविलासा,
अभिनवरुचिरा संस्कृतिरेषा।।
जीवनधारा रम्या सरिता,
चतुर्दशविद्यालोकप्रकाशा,
वेदोपनिषद्रामायणयुक्ता ,
साहित्य कला सुगीता भाषा।।
गिरिनिर्झरसागरसरितैषा,
वनपादपपशुविहगवर्णिता,
सूक्तिसरससरसिजमृदुला सा,
मनोरमा हृत्संस्कृत भाषा।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली