कुछ तो ऐसा ही करके जाना होगा।
याद रखे जमाना मुझे इस तरह,
देश पर मरने वाला दिवाना होगा।
तुम रहो छिप के घर में सलामत सभी,
मुझ को तो इस समर में जाना होगा।
मातृभूमि का ऋण है जो मेरे ऊपर,
आज उस ऋण को हमको चुकाना होगा।
याद रखे जमाना मुझे इस तरह,
देश पर मरने वाला दीवाना होगा।
आज रोको न मुझको सुनो माँ मेरी,
हो न जाऊ मैं कायल तेरे प्यार का।
भूल जाऊं न अपना फर्ज देश का,
देश ऋण तो मुझी को चुकाना होगा।
याद रखे जमाना मुझे इस तरह,
देश पर मरने वाला दीवाना होगा।
देश की आबरू तो बचानी ही है,
पर सबक दुश्मनों को सिखाना होगा।
अपने पावन वतन की धरा से इन्हें,
उल्टे पैरों पर वापस भगाना होगा।
याद रखे जमाना मुझे इस तरह,
देश पर मरने वाला दीवाना होगा।
दिवाकर शर्मा "ओम" - हरदोई (उत्तर प्रदेश)