बसी उनकी अदा प्यारी नज़र के हर नज़ारे में
कहा दिल ने संभल जाओ ,रहोगे चुप कहो कब तक
फसी कश्ती मुहब्बत की, ग़मों के तेज धारे में
दबी आवाज़ ने पूछा, गरजने की इजाज़त दो?
कहा अल्फ़ाज़ ने हँसकर, रहो मन के पिटारे में
तमन्ना को रोशन , जलाकर ख्वाब में दीपक
नहीं उम्मीद से बढ़कर , खुशी संसार सारे में
जँहा गुल हैं वहीं खुशबू , भले हो साथ काँटे
कि जैसे मिल रहे मोती ,जँहा को सिंधु खारे में
सदा से जिस्म की फ़ितरत रही है, नींद से जुड़कर
न सोई रूह इक पल भी, कभी जीवन हमारे में
बनो जज़्बात का दरिया, बहे सुख :दुख सदा मिलकर
न करना फर्क तिलभर भी, किनारे से किनारे में।।।।
ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)