हम भी ज़ख़्मों पे मरहम रखते नहीं ।।
झूँठी तारीफ़ हम उनकी कब तक करें ,
इसलिए आजकल कुछ भी लिखते नहीं।।
जाने किस बात पर लोग मग़रूर हैं ,
मिलके भी प्यार से बात करते नहीं ।।
पैंतरे सब ज़माने ने सिखला दिए ,
इसलिए अब यकीं सब पे करते नहीं ।।
कितने अहसाँ फरामोश हैं आदमी
काम निकला तो फिर याद रखते नहीं।
प्रदीप श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)