चलो बात करते हैं उस रात की
बड़ी बेखबर थी नहीं थी ख़बर
न हालात की और न जज़्बात की
बरसती रही थी मुसलसल घटा
निगाहों ने कैसी ये बरसात की
मेरी जान लेकर ही जाएगी अब
उदासी तुम्हारी ये दिन -रात की
तवज्जो ज़रा भी न मैंने दिया
कभी बात उट्ठी जो बेबात की।
सलामे-मुहब्बत है उस शख्स को,
कि जिसने भी इसकी शुरुआत की।
चलो आप इनआम दे तो गए,
मुझे कब से ख्वाहिश थी सौगात की।
रेणु त्रिवेदी मिश्रा - राँची (झारखंड)